Friday, 13 June 2025

लखनऊ बड़े अफसर के बेटे ने सिपाही को चौकी में घुसकर पीटा FIR में नाम गायब, पुलिस अब भी 'अज्ञात' की तलाश में


 लखनऊ बड़े अफसर के बेटे ने सिपाही को चौकी में घुसकर पीटा



FIR में नाम गायब, पुलिस अब भी 'अज्ञात' की तलाश में



उत्तर प्रदेश, लखनऊ राजधानी में कानून के रखवाले ही कानून तोड़ने वालों के सामने बेबस नजर आए। 29 मई 2025 की रात स्टेडियम पुलिस चौकी में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के बेटे और उसके तीन दोस्तों ने सिपाही अर्जुन चौरसिया को बेरहमी से पीटा, गालियां दीं, वर्दी फाड़ी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। पीड़ित सिपाही अर्जुन चौरसिया की तहरीर पर हजरतगंज पुलिस ने मुकदमा अपराध संख्या 141/2025 अंतर्गत धारा 115(2),121(1),131,352,351(3), भारतीय न्याय सहिंता (BNS) 2023 पंजीकृत कर जाँच कर रही हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पीड़ित सिपाही की FIR में तीन आरोपियों—जयप्रकाश सिंह, अभिषेक चौधरी और सुमित कुमार—का ही नाम दर्ज है, जबकि चौथा आरोपी, जो कथित तौर पर वरिष्ठ अधिकारी का बेटा है, 'अज्ञात' है। करीब दो हफ्ते बीत जाने के बावजूद पुलिस इस 'अज्ञात' की पहचान नहीं कर पाई है।


FIR के अनुसार, रात को स्टेडियम पुलिस चौकी के पास सफेद इनोवा गाड़ी में सवार चार युवक आपस में झगड़ा कर रहे थे। सिपाही अर्जुन ने उन्हें टोका तो नशे में धुत युवकों ने गालियां देना शुरू कर दिया। बात बढ़ी तो वे सिपाही को खींचकर चौकी तक ले गए और वहां मारपीट की। सूत्रों के मुताबिक, चारों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का बेटा भी शामिल था, जिसे सिपाही की टोकाटाकी सबसे ज्यादा नागवार गुजरी। उसने तुरंत अपने पिता को घटना की सूचना दी।



सूचना पर हजरतगंज थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और सिपाही को युवकों से बचाया। चारों को थाने ले जाया गया, लेकिन वहां वरिष्ठ अधिकारी अपनी पत्नी के साथ पहुंच गए। सूत्र बताते हैं कि अधिकारी की पत्नी ने बेटे को थाने लाए जाने पर जमकर हंगामा किया और नाइट ड्यूटी अफसर को भला-बुरा कहा। बाद में अधिकारी ने पत्नी को शांत कराया और बेटे समीक्षा को लेकर घर चले गए। तीनों नामजद आरोपियों को निजी मुचलके पर जमानत मिल गई, लेकिन चौथे 'अज्ञात' का कोई अता-पता नहीं।


डीसीपी मध्य आशीष कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि तीनों आरोपियों को जमानत दे दी गई थी। चौथे आरोपी की तलाश और मामले की जांच जारी है।


48 घंटों में जटिल मामले सुलझाने का दावा करने वाली लखनऊ पुलिस दो हफ्ते बाद भी चौथे आरोपी की पहचान क्यों नहीं कर पाई? सूत्रों का कहना है कि बड़े अधिकारी के दबाव के चलते मामले को रफा-दफा करने की कोशिश हो रही है। यह घटना सवाल उठाती है कि क्या कानून सबके लिए बराबर है, या रसूख वालों के लिए रास्ते अलग हैं?

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